कृषि प्रधान देेेेश में पश्‍चिमी विकास

सत्‍यम् लाइव, 26 सितम्‍बर 2020, दिल्‍ली।। भारत में किसानों की फसल के ऊपर बनायें जा रहे कानून की बात पर इतनी जल्दी निर्णय लेने का अधिकार कभी भी किसी भी राजाओं-महाराजाओं के पास भी नहीं रहा क्योंकि भारत में कृषि देश की रीढ़ की हड्डी है। आपको याद होगा कि भारत में डब्लूटीओ के एग्रीमेन्ट पर जो समझौता भारत की भूमि के लिये किया गया है उस पर महार्षि राजीव दीक्षित जी ने जो अपने भाषण में जनजाग्रती करते समय कहा है वो अति विचारणीय है और ऐसा भी नहीं है कि भारत के राजनेताओं को उसकी भनक नहीं है फिर भी एक ऐसा काम करते चले जा रहे हैं जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधानता से समाप्त होकर औद्योगिक घरानों की तरफ वो भी पश्चिमी सभ्यता के तहत पर होने जा रही है। बड़ी-बड़ी गाड़ी से घूमना अगर विकास है तो हमारे पूर्वजों ने ये कार्य क्यों नहीं किया भारतीय शास्त्रों में वो चाहे श्रीराम हों, श्रीकृष्ण, महावीर स्वामी हों या फिर गौतम बुद्ध सभी ने अहिन्सा का सन्देश देते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार सूर्य की गति को बनवाया है क्योंकि सूर्य की गति ही स्वयं ही भारतीय संस्कृति का आधार बनती है अतः ये आवश्यक है कि अहिन्सा का सिद्धान्त प्रतिपादित होना ही चाहिए। परन्तु आज उसी कृषि व्यवस्था को औद्योगिक घरानों की तरफ परोस कर किसानों को विकास की राह पर ले जाया जा रहा है। इससे पहले भी किसानों की मदद पर भारतीय लेखकों में बाल मुकुन्द गुप्ता तथा दिनकर जी कदम ने आग उगली है परन्तु आज की राजनीति तो मात्र उन सभी महापुरूषों को साल में एक बार याद करके उन पर अपना एहसान लाद रही है शेष तो उनका कहा कुछ भी नहीं हो रहा है। सन् 1950 से सन् 1955 तक के बीच में सूखे और अकाल जैसी स्थिति दिखने मात्र पर 1955 में आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट बनाई गयी और फिर कोई भी किसी भी वस्तु को जमा न कर पाये इसके लिये अध्यादेश लाया गया। ये अध्यादेश समय समय पर घटया बढ़ाया जाता रहा है अब तक जो प्राप्त लिस्ट है उसमें आवश्यक दवाईयाॅ, तेल-तिलहन, सूत, जूट, जूट के बीज, रूई के बीज, पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्यान्न, फल और सब्जियों के बीज, जानवरों का चारा इत्यादि था अब जून 2020 में जो आवश्यक वस्तु में दो नयी चीज मास्क और सैनिटाइजर भी जोड़ दिया गया है। मास्क और सैनिटाइजर दाल और दलहन की तरह ही बाजार में किसान बेचेंगा या फिर कुछ और खेल है इसमें। साथ ही युद्ध, अकाल, कीमतों में अप्रत्याशित उछाल या प्राकृतिक आपदा में सरकार के नियंत्रण में आ जायेगी। ये पहले ही घोषित किया जा चुका है कि कोई भी किसान जमाघोरी नहीं करेगा जिससे अकाल जैसी स्थिति न होने पाये। और जमाखोरी पर सरकार द्वारा नियत्रंण करने के आदेश तब जारी किये जायेगें जब कीमत में फसल पर 50 प्रतिशत और फलों पर 100 प्रतिशत का इजाफा हो जाये। दूसरा कृषि उत्पादन व्यापार में एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एण्ड लाइव स्टाॅक मार्केट कमिटी (एपीएमसी) को किसान उत्पाद बेच सकते थे। अब किसान मंडियों के बाहर भी अपना उत्पाद बेच सकते हैं परन्तु इसके लिये उन्हें एक लाइसेन्स लेना पड़ेगा। किसानों की फसल पर कोई व्यापारी जिसके पास पेनकार्ड हो वो किसान की खेत पर उगने वाली फसल का पैसा पहले दे सकता है साथ ही उसे उत्पादन के पश्चात् खरीद कर अपनी कीमत पर बाजार में बेच सकता है। ध्यान दें दूसरी तरफ कोरोना के कारण कोई भी खुला सामान नहीं बिकेगा इसी कारण से उस फसल को व्यापारी पैक करके अपनी कीमत पर बाजार में बेचेगा। किसानों को मुख्यतया डर इसी बात का है कि कहीं ऐसा न हो कि पहले ही सरकार से गन्ने का पैसा 5 साल बाद तक मिलता है अब तो ये नीजिकरण का व्यापारी होगा जो पैसा कब देगा ज्ञात नहीं है। एक गरीब आदमी नोटबन्दी, जीएटी या कोरोना काल में सिर्फ बदूआ देने के अलावा क्या कर पाया है? जो वो उद्योगपति के खिलाफ कर लेगा उसकी सुनता ही कौन है? ये डर है पहले ही किसान लगातार आत्महत्या करता आ रहा है अब और करेगा ऐसा अनुमान नहीं महार्षि राजीव दीक्षित जी का जो अनुमान था अब सत्य होने जा रहा है।

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सुनील शुक्‍ल

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