कानपुर, सत्यम् लाइव, रंगों का त्यौहार ऐसा त्यौहार है तो बुढे को भी चढ जाये तो जवान बना देता हैै। उत्तर प्रदेश का व्यापारिक शहर कानपुर में होली से रंग खेलना जो प्रारम्भ होता है तो पूरे एक सप्ताह तक चलता है। होलिका दहन केे बाद प्रात: से ही होली का रंग खेला जाता है फिर शाम को रंगारंग कार्यक्रम की बारी आती है तो कहीं पर भजन संध्या तो कहीं पर कव्वाली, कहीं पर होली मिलन समारोह के साथ ठडाई का आनन्द उठाते लोग दिख जायेगें ऐसेे में कवि सम्मेलन और बच्चों के रंगारंग कार्यक्रम भी आपको देखने को मिल जायेगें।
कानपुर शहर में गंगा मेेेेला का बहुत पुुुुुुराना इतिहास है होली केे दिन हटिया नामक स्थल के रजनबाबू पार्क में कानपुर के क्रान्तिकारियों ने भारत का झण्डा फहरा दिया और सब रंग खेलने लगे, उसी समय अंग्रेज अधिकारी इस बात का पता चल गया वो आकर झण्डे को उतारने लगे फिर क्रान्तिकािरियों में अंग्रेजी सेना का विरोध किया तब अंग्रेेेेेेजों ने उन क्रान्तिकारियों को कैद खाने में ले जाने केे पुलिस बल आ गया उन सब को ले जाकर सरसैया घाट स्थित जिला कारागर में डाल दिया।
हटिया उस समय का बडा व्यापारिक केेेेेन्द्र कहा जाता है इस क्षेत्र में आज भी लोहा, कपडा और गल्ले के व्यापारी बहुत से हैं। बताते हैं कि एक तरफ गुलाब चन्द्र सेठ, बुद्वलाल मल्होत्रा, नवीन शर्मा, विश्वराज टण्डन, गिरधर शर्मा और हामिद खॉ सहित 45 व्यक्ति को कैद खाने में जाना पडा। होली केे दिन से अनुराधा नक्षत्र लगने तक ये सभी क्रान्तिकारी कैद खाने में रहे। क्रन्तिकारियों का शहर के नाम से जाने जाना वाला शहर पूरा शहर ने रंग के कपडे जो पहने थे वो वैसे ही पहने रहने की कसम उठा ली जब तक उन क्रान्तिकारियों को रिहा न किया जाये साथ ही सारा बाजार सहित सरकारी नौकरी करने वालो ने भी अपनी नौकरी पर जाने से इन्कार कर दिया। होली केे रंग से रंगा पूरा शहर अगले पॉच दिनों तक रंग से भरे चेहरे को देखकर अंग्रेजों के हाथ पाव फूल गये। इस आन्दोलन की अगवाई गणेश शंकर विद्यार्थी ने की साथ दयाराम मुंसी, हसरत मुहानी था। महात्मा गॉधी ने भी इस आन्दोलन का साथ दिया। अंग्रेजों ने अपनी हार मान ली और सारे ही क्रान्तिकारी को छोड दिया। यह घटना 1942 का है तब तक भी भारतीय परम्परा मेें नक्षत्रों का ज्ञान शेष था इसीलिय आज भी होली केे बाद अनुराधा नक्षत्र के दिन गंगा मेला बडे धूमधाम से मनाया जाता है। यह तिथि लगभग पॉचवे दिन होती है वैसे भी कानपुर का इतिहास ही क्रान्तिकारी के लिये जाना जाता है।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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