सत्यम् लाइव, 13 जून 2020, दिल्ली।। आप कभी भी मत भूलें कि छोटे बच्चों को स्कूल में खेलने के लिये भेजा जाता है, इस खेल के पीछे, आज का विज्ञान चाहे तो तर्क दे, पर भारतीय शास्त्रों में मन की चारों दशाओंं का वर्णन करते हुए, इस शिक्षा को प्रारम्भ गया था। इसी कारण आज भी बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा खेल-खेल में ही प्रारम्भ कराई जाती हैै परन्तु अब आज ऑनलाइन शिक्षा को अपने ढंग से, भारतीयता बनाने का प्रयास किया जा रहा है। ऑनलाइन क्लासेज को दिलचस्प बनाने के लिये, वर्चुअल क्लासेज में, ग्राफिक्स और ऑडियो के माध्यम से बर्चुअल कक्षा करायी जायेगी। इससे बच्चों में दिलचस्पी भी बढेगी। इस तकनीक का प्रयोग केरल और बैग्लूर में प्रारम्भ हो चुका है। कहना का अर्थ है कि अचानक कक्षा मेें हाथी, शेर जैसे जानवर वर्चुअल केे माध्यम से प्रकट कियेे जा रहे हैं। साथ में क्या गारंटी है कि विदेशी सभ्यता, उसे नहीं परोसी जायेगी, ऑनलाइन के माध्यम से उसे कक्षा में ही विदेशी कम्पनी अपना प्रचार कराकर अपनी बाजार नहीं खडा करेगीं। स्वतंत्रता के बाद तब इस शिक्षा व्यवस्था ने अपरिग्रह की परिभाषा समाप्त कर दी है। आज पैसा जीवन की पूरी गणित है। ये बता देना आवश्यक होगा कि भारत की धरती गणित की जनक है आज भारत की गणित को, मात्र रूपया गिनने तक सीमित कर दिया गया है। ये व्यवस्था बहुत अच्छी तो मेरे कहने से नहीं हो जायेगी, क्योंकि इस व्यवस्था से आने वाली समस्याओं को वही बता सकता है जो प्रतिदिन बच्चों केे साथ मेें रहता है।
पढने पर बात करे तो गणित तब नहीं समझ में आती है जब भास्कराचार्य जी, स्वयं पढायें, तो भला इस विधि से कैसे समझ में आयेगी? ऐसे बहुत से प्रश्न पर, कोई नहीं सोच रहा है और विकास की नयी दिशा पर, वो मौन धारणकर काम करता चला जा रहा है। ये सबका मौन, आने वाले भविष्य को ही, सिर्फ दिशा हीन नहीं करेगा अपितु आज के माता पिता को बुढापा खराब कर देगा। इस ऑनलाइन शिक्षा केे अन्दर से जो रास्ता खुल रहा हैै उसमें लेखन हर बच्चे का खराब हो जायेगा, हिन्दी केे अक्षरों को, आज भी अंग्रेजी में लिख रहा है तो कल क्या होगा? कागज की व्यवस्था कम करके, ऑनलाइन की बढती व्यवस्था मेें, न सिर्फ हम सब, विदेशी तकनीकि पर निर्भर हो जायेगें बल्कि कला का जनक भारत, अपनी कला को भूल चुका होगा। जबकि कला का जन्म भी, सूर्य की गति के अनुसार त्रिकोणमीति और रेखा गणित से हुआ हैैै। इस गणित के माध्यम को जाने बिना लेखनी कभी अच्छी नहीं हो सकती है। इसी कारण से भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने, कम्प्युटर शिक्षा छोटे बच्चों केे लिये अनिवार्य कराई थी। उसी समय मुझे छोटे बच्चों केे लिये, कानपुर के श्याम नगर में स्थिति ऑरचीज एजूकेशन में, ग्रफिक्स का काम करने का सौभाग्य मिला। आर्यभट्ट द्वारा लिखित सूर्य सिद्धान्त को वहॉ से समझना प्रारम्भ किया और अब लगता है इस गणित को समझने में, एक जीवन छोटा है। यही पंचतत्व का ज्ञान कराता हैै। ऐसे भारतीय शास्त्रों को छोडकर, विदेशी शिक्षा के पीछे भागने से, कभी मन शान्त नहीं हो सकता और जब तक मन शान्त नहीं होगा। तब तक गणित कभी समझ मेें नहीं आयेगी क्योंकि गणित ही ज्योतिष शास्त्र है।
भारतीय शिक्षा व्यवस्था इतनी सरल है अनपढ मॉ-बाप भी अपने बच्चों को अपने घर पर ही नैतिकता सीखा सकते हैं। सूर्य सिद्धान्त का ये श्लोक कहता है कि सूर्य देव पूरे जगत के पालनहार है अत: उसके आगे कोई अवक्षेप आ जाये तो कीटाणु जन्म ही लेगें और उस समय को अवनति काल ही कहा जायेगा। अपने परिवेश को पहचानने मात्र से, व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति होती है। डिग्री से ज्ञान प्राप्त होगा ये मात्र बहम है। पूरे विश्व केे एक भी ज्ञानी के पास डिग्री नहीं है उसमें वाल्मीकि जी, तुलसीदास बल्कि चरक और पतांजलि भी शामिल है विदेशी शिक्षा, भारतीय शिक्षा के पीछे चलती है। पर आज उल्टा है अत: भारतीय जन मानस को लौटना पडेगा भारत की तरफ।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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