हकलाना, तुतलाना, जीभ लडखडाने का सफल इलाज: “स्पीच थैरेपी के माध्यम से”

दिल्ली: एक शोध के अनुसार भारत में सात से नौ प्रतिशत लोगों को बोलने, सुनने और समझने में परेशानी होती है। इसमें से 14 प्रतिशत समस्याएं केवल स्पीच डिसॉर्डर यानी बोलने से जुड़ी हुई हैं। स्पीच थेरेपिस्ट की मानें तो कम उम्र में ही इसके उपचार की ओर ध्यान देना समस्या को बढ़ने से रोक देता है, बता रहे हैं
डाक्टर मुरली सिंह

इतना आसान है न ‘दुबई’ शब्द बोलना! पर एक समय स्पीच डिसॉर्डर से जूझ चुके अभिनेता रितिक रोशन के लिए ऐसा नहीं था। जब दुबई में वह अपना पहला अवॉर्ड लेने जा रहे थे, तो उन्हें अपने भाषण के बाद जोश के साथ ‘आई लव यू दुबई’ बोलना था। स्पीच डिसॉर्डर के कारण वह ‘दुबई’ शब्द पर अटक रहे थे। ऐसे में हिृतिक ने इसे बोलने का जमकर अभ्यास किया। कार्यक्रम से एक रात पहले भी वह अपने होटल के कमरे में काफी देर तक तेज आवाज में ‘दुबई’ शब्द दोहराते रहे। उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने उस समारोह में धाराप्रवाह बोला। वह ‘दुबई’ शब्द पर अटके भी नहीं। बोलने से जुड़ी इस तरह की समस्याओं के साथ एक राहत की बात यह है कि सही समय पर इस पर काम हो, तो सौ प्रतिशत सुधार भी हो सकता है और यह भी कि अब लोग इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं।

हालांकि बड़े स्तर पर अभी भी लोग अपने बच्चे के साफ न बोलने पर सोचते हैं कि उनके वयस्क होने पर यह समस्या खुद-ब-खुद सुलझ जाएगी। पर ऐसा हमेशा नहीं होता है। इस समस्या से जूझ रहे व्यक्ति का हंसी का पात्र बनना, आत्मविश्वास प्रभावित होना एक आम बात है। बीते कुछ सालों में इस समस्या को लेकर लोगों का नजरिया काफी बदला है। सिलेब्रिटीज भी अब इस तरह की समस्याओं को लेकर सोशल मीडिया पर बात कर रहे हैं। हालांकि यह भी सच है कि स्पीच थेरेपिस्ट की पहुंच फिलहाल बड़े शहरों तक ही सीमित है, जबकि इससे प्रभावित बच्चों की संख्या कहीं अधिक है।

पांच तरह की परेशानी :-
स्पीच डिसॉर्डर मुख्य रूप से पांच तरह के होते हैं। इनमें सबसे पहला है हकलाना (स्टैमरिंग), दूसरा है तुतलाना व स्पष्ट शब्द न बोलना, तीसरा है सुनने में अक्षम होने की वजह से भाषाई समस्याएं होना, चौथा है भाषा को समझ कर उचित प्रतिक्रिया देने में अक्षम होना और पांचवां है किसी तरह के विकिरण (रेडिएशन) के संपर्क में आना या किसी खास दवा के प्रभाव या किसी अन्य कारण के चलते आवाज से जुड़ी समस्याएं होना, जैसे आवाज का भारी होना, गला हमेशा बैठा रहना, गले के वोकल कॉर्ड वाले भाग में कैंसर या वोकल कॉर्ड को नुकसान पहुंचना आदि।

जानें ‘स्पीच माइलस्टोन्स’ को:-
किसी भी बच्चे में बोलने की क्षमता के विकास से जुड़े चरणों को डॉक्टर ‘स्पीच माइलस्टोन्स’ कहते हैं। जैसे, तीन माह के होने तक बच्चे ‘कूइंग’ और ‘गूइंग’ करने लगते हैं, यानी उनकी बोली में सबसे ज्यादा ‘क’ और ‘ग’ जैसे अक्षर होते हैं। इसी तरह छह माह के होने पर वे ‘बैबलिंग’ करने लगते हैं, यानी होंठों को मिलाकर बोले जाने वाले ‘बाबाबा’, ‘पापापा’ जैसे शब्द बोलने लगते हैं। एक साल के होने तक वे ‘चाचा’ और ‘दादा’ जैसे शब्द बोलने लगते हैं। वहीं दो साल के होते-होते तक वे दो से तीन शब्दों के समूह वाले वाक्य भी बोलने लगते हैं, जैसे, ‘बाय-बाय!’ आदि। अगर उम्र के इन पड़ावों पर पहुंचने के बाद भी आपका बच्चा बोलने में पर्याप्त तेजी नहीं दिखा रहा है, तो आपको विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। विशेषज्ञ स्पीच थेरेपी से बच्चे को बोलने में मदद कर सकते हैं। यह थेरेपी हर बच्चे की समस्या और उम्र के आधार पर दी जाती है।

उम्रदराज लोग भी होते हैं शिकार:-
कई बार बड़ी उम्र के लोग भी स्पीच डिसॉर्डर के शिकार हो जाते हैं। बड़ों को मुख्य रूप से ‘फ्लुएंसी डिसॉर्डर’ (हकलाना) और ‘क्लैरिटी डिसॉर्डर’ (बोलने में स्पष्टता की कमी) होते हैं। एक्सीडेंट या दिमाग में चोट लगने पर भी कई बार बोलने की क्षमता पर पूर्ण या आंशिक असर पड़ जाता है। कई बार समस्या बचपन से ही होती है, जिस पर ध्यान बड़े होने पर दिया जाता है। स्पीच थेरेपी केवल छोटे बच्चों के लिए ही नहीं बड़ों के लिए भी फायदेमंद साबित होती है।

Ads Middle of Post
Advertisements

इनसे भी पड़ता है बोलने की क्षमता पर प्रभाव:-
मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे लोगों को भी बोलने से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं। कुछ लोगों में स्पीच थेरेपी का अच्छा असर देखने को मिलता है। मजबूत इच्छाशक्ति की भी इसमें खास भूमिका है। कुछ अन्य समस्याएं होने पर भी बोलने की क्षमता पर असर पड़ने लगता है, जैसे- ‘ऑटिज्म ‘अटेंशन डेफिसिट हायपरएक्टिविटी डिसॉर्डर (एडीएचडी)
‘स्ट्रोक ‘मुख का कैंसर ‘गले का कैंसर ‘दिमाग से जुड़ी हंटिंग्टन्स डिजीज ‘डिमेंशिया ‘लकवा ‘आनुवंशिक कारण
बच्चों से बतियाएं, सुनाएं लोरी

आजकल बच्चों का समय माता-पिता की कहानियों और लोरी की जगह टीवी व वीडियो गेम्स पर अधिक बीत रहा है। ऐसा करने पर बच्चों की चीजों को देखकर समझने की क्षमता तो विकसित होती है, पर भावनात्मक और संवाद क्षमता विकसित नहीं हो पाती। इससे बचने के लिए अभिभावकों को अपने बच्चों से बात करने, उन्हें किस्से, कहानी, लोरी सुनाने के लिए समय जरूर निकालना चाहिए। अगर बच्चा किसी शब्द को गलत बोल रहा है, तो उसकी नकल करने और उस पर लाड जताने की जगह उसके सामने खुद उस शब्द को सही तरीके से बोलना चाहिए।

अध्यापक व एंकर भी रहें सतर्क:-
पढ़ाना, रेडियो व टीवी पर एंकरिंग करने से जुड़े काम करने वाले लोगों में स्पीच से जुड़ी समस्याएं होती रहती हैं। ज्यादा देर तक या तेज बोलने से वॉइस बॉक्स (गले का एक विशिष्ट भाग) को नुकसान पहुंचता है, जिससे आवाज की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसी तरह गायन के क्षेत्र से जुड़े लोग भी कई बार रियाज के वक्त ऊंचे या नीचे सुर में गाते हैं। कई बार आवाज पर क्षमता से अधिक जोर देने या लगातार लंबे समय तक गाने से भी वोकल कॉर्ड पर असर पड़ता है। अकसर गायकों को गाने से पहले अपनी आवाज को वॉर्म अप करने के बारे में बताया जाता है। इसके तहत वे ऊंचे या नीचे सुर से पहले बीच के सुर लगाते हैं। ब्रीदिंग एक्सरसाइज भी उन्हें अपनी आवाज पर बेहतर नियंत्रण देती है।

किस प्रकार से होता इसका इलाज :-
गांव-कस्बों में स्पीच सेंटर व इसके विशेषज्ञों की मौजूदगी न के बराबर है। कई अभिभावकों के पास जानकारी नहीं है तो कुछ महंगे उपचार के कारण भी डॉक्टर के पास जाने से हिचकते हैं। हालांकि सरकारी हॉस्पिटल व एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे संगठन इस संबंध में राहत पहुंचाते हैं। कई बार ऐसे मामलों में शिक्षक सबसे पहले माता-पिता को बच्चे से जुड़ी समस्या से अवगत कराते हैं। बच्चे को एक बार थेरेपिस्ट को जरूर दिखाना चाहिए, ताकि समस्या का पता लग सके। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि स्पीच से जुड़ी समस्याएं भी कई तरह की होती हैं। अगर बच्चा किसी खास वजह से तुतलाता है और उसका उपचार किसी दूसरे प्रकार के तुतलाने को ध्यान में रखते हुए कर दिया गया, तो सही परिणाम नहीं मिल पाते। घर से दूरी अधिक होने पर डॉक्टर, अभिभावकों को ही कुछ दिन स्पीच थेरेपी की ट्रेनिंग देते हैं। दिल्ली के कई स्पीच थेरेपी सेंटर स्पीच डिसॉर्डर से पीडि़त बच्चों की मांओं को कुछ महीनों के अंतराल में 10-10 दिन की ट्रेनिंग देते हैं। अगर किसी वयस्क को यह समस्या है, तो भी उसे जितना जल्दी हो सके, किसी विशेषज्ञ से जांच करवा लेनी चिाहए

इन बातों का रखें ध्यान
‘धूम्रपान करने या धूम्रपान वाली जगह पर खड़े होने से बचें। धुएं के संपर्क में आने वालों को ज्यादा आसानी से वोकल कॉर्ड्स का कैंसर होता है।
‘एल्कोहल या कैफीन युक्त पेय पदार्थों के सेवन से बचें। इनके सेवन से शरीर में पानी की कमी हो जाती है और आवाज में खुष्की व रूखापन बढ़ जाता है।
‘बहुत तेज चिल्लाने व शोर वाली जगहों पर बात करने से बचें।
‘श्वास संबंधी व्यायाम करें।
‘अत्याधिक ठंडी और सूखी जगह पर ज्यादा देर न बैठें। इससे लैरिंक्स में कफ जम जाता है।
‘बहुत ज्यादा मिर्च-मसालेदार खाना न खाएं। इससे गले में संक्रमण हो सकता है।
‘अगर बोलने का काम ज्यादा है तो दिन का कुछ समय शांत रहने के लिए नियत करें।
‘कम्प्यूटर के सामने आगे की तरफ झुक कर न बैठें। ऐसा करने से गले की मांसपेशियों पर जोर पड़ता है।
‘छोटे बच्चों को नियमित 15 से 20 मिनट बोल कर किताब पढ़ने का अभ्यास कराएं।

विशेषज्ञ : डॉ.मुरली सिंह
सीनियर स्पीच थैरेपिसट
जैनेसिस -न्यूरोजन
अपोजिट करोस-रि़वर माँल
रिषभ विहार दिल्ली -110092

अन्य ख़बरे

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.