सत्यम् लाइव, 7 अगस्त 2021, दिल्ली।। स्वदेशी का अर्थ होता है अपने ही देश की उत्पादित वस्तु का उपयोग करना। इस स्वदेशी आन्दोलन की आवश्यकता भारत देश को क्यों पड़ी? इसकी सच्चाई जानना आज बहुत आवश्यक है क्योंकि इतिहास पुनः अपने आपको दोहराने जा रहा है। अंग्रजी सत्ता की राज्य करने की जो नीति थी उसका मुख्य सूत्र बिन्दु था ‘‘फूट डालो, शासन करो’’। 19 जुलाई 1905 को भारत के वाइसराय लॉर्ड कर्जन थे। वाइसराय ने बंगाल को दो भागों में बॉट दिया। 16 अक्टूबर 1905 से यह कानून प्रभावी होगा। चन्द लोगों को छोड़कर हिन्दु-मुश्लिम दोनों ने लॉर्ड कर्जन का जमकर विरोध किया।
और जनता का साफ मानना था कि ये अंग्रेजों द्वारा हिन्दु-मुश्लिम को तोड़कर भारत पर कब्जा करने की नीति है। इस विभाजन के विरोध ने आज के ही शुभ दिन अर्थात् 7 अगस्त 1905 को ‘‘स्वदेशी आन्दोलन’’ का रूप रखकर सामने आया। इस आन्दोलन में हिन्दु-मुश्लिम एक मिशाल आयम करते हुए। एक-दूसरे के हाथ पर राखी बॉधने से प्रारम्भ किया। जैसे-जैसे ये आन्दोलन आगे बढ़ा, हिन्दु-मुश्लिम दोनों ने सम्पूर्ण स्वदेशी के भेष धारण किया और अंग्रेजों वस्तुओं की होली जलानी प्रारम्भ कर दी। आज के स्वदेशी प्रवक्ता राजीव दीक्षित के मुख से आप सबने सुना ही होगा कि हिन्दु-मुश्लिम दोनों मिलकर विदेशी वस्तु अगर कोई खरीद भी लेता था तो उससे पैसे देकर सामान खरीद लेते थे और उसके हाथ ही उस सामान की होली जलवा देते थे। विदेशी ब्लेड का त्याग हुआ और लोग उस्तरा से दाड़ी बनवाने लगे।
फिर इस आन्दोलन में अरविन्द्र घोष, रविन्द्र नाथ टैगोर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय ने संरक्षक की भूमिका निभाई। 1908 तक आते-आते इस स्वदेशी आन्दोलन ने सम्पूर्ण देश में विस्तार हो गया और हिन्दु-मुश्लिम एकता के साथ सम्पूर्ण स्वदेशी की ऐसी मशाल जली कि अंग्रेज घबरा गये और दिसम्बर 1911 अंग्रजों ने बंग-भंग विभाजन समाप्त किया। घबराकर ही कलकत्ता को राजधानी समाप्त करके, दिल्ली को राजधानी बना दिया। हलांकि 1874 में भोलानाथ चन्द्र ने ‘‘मुखर्जीज मैग्जीन’’ में स्वदेशी का नारा दे दिया था। उन्होंने लिखा कि किसी भी प्रकार का शरीरिक बलप्रयोग न करके राजनुगत्य अस्वीकार न करते हुए तथा किसी नए कानून के लिये प्रार्थना न करते हुए हम अपनी पूर्वसम्पदा लौटा सकते हैं। इस अस्त्र को अपनाना कोई अपराध नहीं है। अतः हम संकल्प करें कि विदेशी वस्तु नहीं खरीदेंगे। हमें यह हर समय स्मरण रखना होगा कि भारत की उन्नति भारतीयों के द्वारा सम्भव है।
आज पुनः ऐसे ही स्वदेशी आन्दोलन की आवश्यकता है साथ में ये भी याद रखना होगा कि आज की पीढ़ी को भारतीयता के आधार पर तकनीकि का प्रयोग करना होगा क्योंकि तकनीकि सदैव अपनी मान्यताओं पर आधारित होती है। ये आपने भारतीय वैज्ञानिक राजीव दीक्षित के मुख से सुन सकते हो। तकनीकि आपकी ही चलेगी आप पिछड़े नहीं हो। अपनी तकनीकि को अपनाकर परन्तु उनकी तकनीकि अपनाकर एसी, फ्रिज के माध्यम से प्रदूषण फैला रहे हो और मानकर बैठे हो कि प्रदूषण पराली जलाने से होता है। कार विकास का पैमान मान लिया है और घोड़े को भूखा मार रहे हैं जबकि कार पूल से घूमा दो नीचे गिर जायेगी परन्तु घोड़ा आपको भी सुरक्षित रखते हुए कूदता है स्वयं जान गवां देता है लेकिन आपको खरोंच नहीं आने देता है। ये है मान्यता के आधार पर तकनीकि का विकास जिसकी आज आवश्कता है।
सुनील शुक्ल
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