सत्यम् लाइव, 2 अक्टूूबर 2020, दिल्ली।। जय जवान जय किसान का नारा देने वाले भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में एक कायस्थ परिवार में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। माँ का नाम रामदुलारी था परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। लालबहादुर जी का विवाह 1928 में मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ था। ललिता शास्त्री से उनके छ: सन्तानें हुईं, दो पुत्रियाँ- कुसुम व सुमन और चार पुत्र- हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक। प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल मेंं 27 मई 1964 को देहासवान हो जाने के पश्चात् 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री बने। 2 अक्टूबर 1869 को जन्म महात्मा गॉधी जी के साथ अहिन्सा के पूरक प्रधानमंत्री अपने सद्गगुणों के कारण ये पद पाया था जिसका भरपूर रूप से भारतीयता में सम्पूर्ण स्वदेशी की शुरूवात कराने वाले प्रधानमंत्री बने। श्री शास्त्री के लिये महर्षि राजीव दीक्षित जी ने कहा है कि ”ऐसा प्रधानमंत्री न कभी हुआ है और न कभी होगा।” मात्र 18 माह प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए बिना कहे भारतीय किसान और जवान को स्वालम्भी तथा आत्मनिर्भर बनाने केे लिये बहुत कुछ काम किया। शास्त्री जी के शासन काल में 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला करने की भूल कर दी फिर क्या था? सैनिकों की ऐसी तैयारी थी कि पाकिस्तान ऐसी करारी शिकस्त मिली जिसकी कल्पना आज तक पाकिस्तान नहीं कर सका। शास्त्रीजी ने इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया औरजय जवान-जय किसानका नारा दिया। परम्परानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के प्रमुख व मन्त्रिमण्डल के सदस्य शामिल थे। संयोग से प्रधानमंत्री उस बैठक में कुछ देर से पहुँचे। उनके आते ही विचार-विमर्श प्रारम्भ हुआ। तीनों प्रमुखों ने उनसे सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूछा: “सर! क्या हुक्म है?” शास्त्रीजी ने एक वाक्य में तत्काल उत्तर दिया: “आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?” अमेरिका के हस्ताक्षेप करने पर भी शास्त्री जी ने सीमा विवाद बताकर चुप करा दिया। साथ ही इसी अठारह माह में अमेरिका के यहॉ से आने वाला सबसे खराब गेहॅ पीएल-480 को लेने से इन्कार कर दिया साथ ही अमेरिका ने जब कहा कि आप यहॉ अकाल पड जायेगा लोग भूखे मर जायेगें। तब शास्त्री का सुन्दर जवाब सुनकर अमेरिका के होश ठिकाने आ गये। शास्त्री जी ने कहा कि हम भारतवासी सप्ताह के एक दिन तो व्रत रहते ही हैं एक दिन और रह लेगें परन्तु तुम अपनी सोचो कि गेहूॅ न खरीदा तो तुम्हारा क्या होगा? ऐसा निष्पक्ष शासन काल बेहद कठिन होता है। पूँजीपति देश पर हावी होना चाहते थे और दुश्मन देश हम पर आक्रमण करने की फिराक में थे। परन्तु आत्मविश्वास के साथ अपने देश को विदेशी कम्पनी के हाथों न देने वाले शास्त्री जी की याद आज भी ताजा हो जाती है जब भारत के समझाैतों की दशा दिखती है। हमारे निडर भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी जिनके पास सादगी ऐसी भरी थी कि मात्र दो जोडी कपडे लेकर भारत केे इतने महत्वपूर्ण पद पर विराजमान हुए और ताशकन्द में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारतरत्न से सम्मानित किया गया। शास्त्रीजी की मृत्यु को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जाते रहे। बहुतेरे लोगों का, जिनमें उनके परिवार के लोग भी शामिल हैं, मानते है कि शास्त्रीजी की मृत्यु हार्ट अटैक से नहीं बल्कि जहर देने से ही हुई। पहली इन्क्वायरी राज नारायण ने करवायी जो बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गयी, इण्डियन पार्लियामेण्ट्री लाइब्रेरी में कोई रिकार्ड मौजूद नहीं है। कहा तो ये भी जाता है कि शास्त्रीजी का पोस्ट मार्टम भी नहीं हुआ। परन्तु भारत माता का वो लाल भारत को आत्मनिर्भर भारतीय स्वाभिमान की गति पर करना चाहता था अब हमारे बीच नहीं थे और ऐसे मॉ के लाल को बहादुर कहकर ही सम्बोधन मात्र ही बचा बच पाया है आज तक किसी भी प्रधानमंत्री ने गलत दिशा पर चलकर देश का स्वाभिमान बढाने की जगह विदेशों को स्वालम्भी बनाने का कार्य सम्पन्न किया है।
सुनील शुक्ल
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