काल को जाने बिना, महाकाल पर प्रतिबन्‍ध

सत्‍यम् लाइव, 2 सितम्‍बर 2020, दिल्‍ली।। काल जो जानता है उसकी रक्षा स्‍वयं महाकाल करते हैं। ये वाक्‍य मैने तब लिखा जब स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती द्वारा बताये गये भारतीय शिक्षा व्‍यवस्‍था के बारे में जान लिया। जी हॉ मैकाले शिक्षा व्‍यवस्‍था भारत में लागू करने की तैयारी चल रही थी उसी समय स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती जी ने मैकाले के सामने भारतीय कुछ विषय रखे थे जो आज तक नहीं पढाये गये है। इन विषय में वाल्‍मीकि रामायण, महाभारत, पुराण, ब्राम्‍हाण सत् पथ ग्रन्‍थ तथा सूर्य सिद्धान्‍त पढाने को कहा था। महर्षि राजीव दीक्षित के अथक प्रयास के पश्‍चात् आयुर्वेद पर जो कार्य प्रारम्‍भ हुआ वो कम्‍पनी के भेष रखकर, बाजार बनाने लगा जबकि आयुर्वेद के माध्‍यम से ही स्‍त्री को पुरूष की शक्ति कहा गया है। इसकी वैज्ञानिकता तो राजीव भाई अपनी जॉन गवां कर भी कलयुगी ज्ञानी को नहीं समझा सके। आयुर्वेद में छठ रस के निर्माण को लेकर ही भारतीय जनमानस के दिनचर्या का आवश्‍यक अंग, रसोई का निर्माण कराया गया था जिसकी स्‍वामिनी स्‍त्री को बनाया गया था। उस समय स्‍त्री को काल अर्थात् समय का ज्ञान आवश्‍यक कराया जाता रहा है और जो स्‍त्री अपनी रसोई के माध्‍यम से अपने पूरे परिवार को स्‍वस्‍थ रख लेती थी वो वैदिक नारी कहलाती थी। परन्‍तु स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती जी के कथनानुसार काल का ज्ञान तो कराया नहीं गया बल्कि कलयुग में बिना काल को जाने, महाकाल पर सुप्रीम कोर्ट प्रतिबन्‍ध लगा देता है वो आयुर्वेद के अनुसार कहे गये पंचामृत को लेकर। आयुर्वेद कहता है कि ब्रम्‍हाण्‍ड में यदि कोई सबसे शुद्ध पेय पदार्थ है तो वो है पंचामृत। उस पंचामृत को अब आप महाकाल पर नहीं चढा सकेगें। केवल पूजा-अर्चना ही कर सकेगें। शिवलिंग को हाथ से छोने पर भी सुप्रीर्म कोर्ट ने प्रतिबन्‍ध लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर समिति से कहा है कि वह भगवान को अर्पित करने के लिए श्रद्धालुओं को शुद्ध जल व दूध उपलब्ध कराए। आयुर्वेद के अनुसार देशी गाय के दूध, मूत्र, दही, गोबर का रस और गौघृत के मिश्रण से पंचगव्‍य बनता है। अहिन्‍सावादी भारत देश, मॉस निर्यात में भारत पहले नम्‍बर हो तो फिर भला पंचगव्‍य शुद्ध कहॉ से मिलेगा? वैसे ही मिलेगा जैसे जल मिल रहा है। शिवलिंग का अभिषेक आर.ओ. जल (मशीन से शुद्ध किया पानी) से किया जा रहा है। 25 अगस्‍त को याचिका पक्ष रखता है और 27 अगस्‍त को पक्ष सुना जाता है और मंगलवार 1 सितम्‍बर मंगलवार को जस्टिस अरूण मिश्रा फैसला सुनाता है। जज का नाम मैने सोच समझ कर लिखा है जिससे आपको ये गलतफैमी न हो कि ब्राम्‍हण के पास स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती जी द्वारा बताये गये ज्ञान अभी इस धरा पर शेेष है। याचिका मेें कहा गया था कि दूध, दही, पंचामृत चढाने के बाद हाथ रगडने से शिवि‍लिंग को नुकसान हो रहा है। करोडो वर्षो से बसी धरती पर आज तक किसी भी भारतीय मान्‍यता को नुकसान नहीं हुआ फिर कलयुग में ही क्‍यों नुकसान हो रहा है। इसका जबाव तो श्रीरामचरितमानस के उत्‍तर काण्‍ड में दोहा नम्‍बर 97 से कलयुग के वर्णन से ही मिल सकता है। मैं इस लेख के माध्‍यम से इतना अवश्‍य कहता हूॅॅ कि भारत के उच्‍च अधिकारी को भी आज के ज्‍योतिष शास्‍त्र के ज्ञान की आवश्‍यकता है जिसको स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती जी ने अन्‍धविश्‍वास नहीं कहा था बल्कि उसे पढाने केे लिये कहा था। अन्‍धविश्‍वास तो अंग्रेजों ने कहा था और उसी का प्रचार लगातार चला आ रहा हैै स्‍वयं आर्यसमाज ही इस कार्य को कर रहा है।

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सुनील शुक्‍ल

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