
सत्यम् लाइव, 4 सितम्बर 2020, दिल्ली।। यज्ञ का एक अर्थ जीवन में संयम रखना भी बताया है आज भारतीय शिक्षा व्यवस्था मेें अपरिग्रह के बारे कुछ भी पढाया नहीं जा रहा है अर्थात् भारतीय संस्कृति और सभ्यता का ज्ञान कहीं भी नहीं दिया जा रहा है मैं ये यकिन के साथ कह सकता हूॅ कि जब तक भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में आने वाली पीढी को नहीं पढाया नहीं जायेगा तब तक इस देश में कभी शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। आज की शिक्षा का उद्देश्य मात्र पैसा कमाना रह गया है कहीं भी किसी में प्यार की भावना, अपनापन समाप्त हो चुका है आज का बच्चा ही अपने माता-पिता को वृृृृद्धाश्रम में छोडकर वासुधैव कुटुम्बकम् को भूल चुका है और भगवान की पूजा करके भी हर व्यक्ति उससे सुखी रहने केे लिये एक मात्र पैसा ही मॉगता है। प्रश्न बनता है क्या मनुष्य को पैसा सुखी बना सकता है? इसका उत्तर जब भी आप पश्चिमी सभ्यता से पूछेगें तो उत्तर मिलेगा कि हॉ। परन्तु जब आप भारतीय शास्त्रों में इसका उत्तर खुजेंगे तो इसका उत्तर आप को तब मिलेगा जब आप सुख और आनन्द का अन्तर समझेगें। सुख को तो मन अनुभूति कहा गया हैै और आनन्द को हद्धय की और सन्तुष्ट मन का, हद्धय ही आनन्द पाता है। जिस मनुष्य के पास भावना ही नहीं होगी उसका मन कभी भी सन्तुष्ट नहीं हो सकता है और जिसका मन सन्तुष्ट नहीं है उसका हद्धय का आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता है। यही हद्धय रसानन्द प्राप्त कराता है और यही रसानन्द भगवान की प्राप्ति कराता है। ऐसे में चरक जी का कथन ”प्रज्ञापरोद्दाेे हि सर्वरोगाणु मुख्यं कारणं।।” अर्थात् मन, क्रम और वचन द्वारा किये गये अपराध के कारण ही आप रोगी होते हैं। ऐसा ही भगवान कृष्ण गीता में कहा है कि विषय वस्तु का ध्यान आपको भटका देता है और दूसरे से द्वेष पैदा करवा देता है यही द्वेेष दूसरो के पतन से पहले आपका पतन करा देता है। दूसरी तरफ अष्टांग योग के आधी जानकारी ने भी मनुष्य को योग से भ्रमित कर रखा है क्योंकि कलयुग में व्यक्ति सिर्फ सोचता है पढता नहीं है। अपने मन से नये नये पंथों को उजागर कर देने की ऐसी अद्भूूत क्षमता विकसित हो जाती है कि स्वयं को ब्रम्हा मानकर नये ग्रन्थों को स्वयं नयेे विचारों के साथ कहता चला जाता है और ऐसा ही व्यक्ति योग की क्रिया को सही दिशा नहीं देता है तब फिर यज्ञ का लाभ नहीं मिल पाता है और माया के वशीभूत होकर अपना जीवन यापन करता हुुुुआ व्यक्ति धन लाभ को ही अपना जीवन बना लेता है। ऐसी उत्तम अध्यात्म शिक्षा व्यवस्था में, आज की ऑनलाइन शिक्षा को जोड जाने से इतना मानकर चलें कि कलयुग ने अपनी पकड मजबूत की है। ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था भारतीय जनमानस की याददास्त कमजोर करने का एक मात्र विकल्प खोजा गया है क्योंकि भारतीय प्रकृति के अनुरूप अद्भूूत क्षमता का मस्तिष्क सदैव से ही भारत में जन्म लेता रहा है और आगे भी लेता रहेगा। ये ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था जिसको आज विकास की धूरी समझा जा रहा है इस पर ही बैठ कर कलयुग अब आप सब पर राज्य करेगा और आप सबका मोझ का मार्ग रूकेगा। इस व्यवस्था से बचने के लिये सर्वप्रथम तो अपने मन को एकाग्र करने के विषय में सोचें। जो पैसा आपने नेट पर खर्चा कर रहे हैं उसे भारतीय प्रकृति के अनुरूप चलायें। ऑनलाइन मस्तिष्क की सारी बीमारियों की जड है ऐसा हमारे देश के सभी मनोरोग चिकित्सक और सभी विशिष्ठ जन जानते हैं।
सुनील शुक्ल
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