सत्यम् लाइव, 23 अप्रैल 2021, दिल्ली।। अपनेे ही शास्त्रोंं से दूर बैठा को अन्धविश्वास बताने वाला भारत आज प्राणवायु को भूल चुका है और ऑक्सीजन के लिये परेशान है और इतना परेशान हैंं यहॉ के शासन और प्रशासन कि वो पानी का भी रसायनिक सूत्र भूल चुके हैं। पीपल, बरगद, नीम और तुलसी जैसी मॉ को छोडकर पश्चिम काेे विज्ञान अपनाते हुए ऑक्सीजन की खोज में निकल पडे हैं जिसे 1774 में जोजेफ ने अपने नाम से पेटेन्ट करा ली थी। अन्यथा उससे पहले किसी को ऑक्सीजन के बारे में नहीं पता था ये हो नहीं सकता है।
भारतीय शास्त्रों में, गौ, गंगा और तुलसी को माता का नाम क्या औपचारिकता वश दिया गया है ये बात आपको स्वयं समझनी पडेगी, अब इस कलयुग में सारे भगवाधारी भी कलयुगी ज्ञानी कहलायेगें। ”सर्वरोग निवारक जीवनीय” शक्ति वर्धक, के रूप में स्वयं देवी माँ हमारे बीच उत्पन्न हुई थीं ऐसा हमारे ऋषिगण ने कहा है। तुलसी का पौधा 2-4 फीट ऊँचा होता है 6-8 इंच लम्बी मंजरी उगती हैं। बीज गोलाकार, चिकना तथा भूरे एवं काले रंग के होते हैं। पाँच अमृतों में गौ-मूत्र, गौ-दुग्ध, गंगाजल, तुलसीदल तथा शहद बताया गया है।
तुलसी का माता सीता ने भी उपयोग सीखाया:-श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के साथ श्रीराम के सम्पूर्ण भारत में श्रीराम के चरण कहाॅ कहाॅ पडे इस विषय पर कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वनवासी श्रीराम, माता सीता और लखन लाल पूरे समय कुछ आवश्यक कार्य धरती पर कराये जैसे राक्षसों से डरे सहमे किसानों को, राम और लखन ने कहीं पर किसानों को हल चलाना सीखाया तो कहीं पर माता सीता ने महिलाओं को अपने परिवार को स्वस्थ रखने के भोजन बनाने की कला सीखती थीं ये शब्द माता कैकयी के माता सीता के लिये हैं कि‘‘मेरे सीता से अच्छी रसोई कोई नहीं बना सकता।’’कहते हैं वन में माता अपने साथ तुलसी के बीज अवश्य रखती थीं। इस विषय पर काम आगे किया तो पता चला किछत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में एक क्षेत्र है जिसे बगीचा के नाम से जानते हैं इस पूरे क्षेत्र में तुलसा के पौधे बहुत हैं।
जब माता सीता, श्रीराम और लखन लाल के साथ यहाॅ पहॅुचती हैं तो पता चलता है कि इस पूरे क्षेत्र में इस समय मलेरिया बहुत फैला हुआ है तब माता सीता ने, इस क्षेत्र की महिलाओं को तुलसी का काढा बनाना सीखाया और पूरे क्षेत्र में तुलसा के पौधे का रोपण कराया तथा पूजा पाठ के साथ, औषधि का उपयोग भी बताया आज भी इस क्षेत्र का नाम बगीचा इसी कारण से है। ऐसे ही तुलसा के जब पर्यायवाची देखे तो कायास्था- त्वचा रोग को समाप्त करने वाली, तीव्रा- तुरन्त परिणाम देने वाली,देव दुन्दुभि –देवी गुणों वाली,दैत्यघ्नि –कीटाणु को नाश करने वाली,पावनी –मन, वाणी और कर्म को स्वस्थ करने वाली,सरला –आसानी से प्राप्त होने वाली तथासुरसा –लालारस अर्थात् मुँह की लार। सुरसा के नाम से याद आता है कि ‘‘जस-जस सुरसा बदन बढावा, तासि दून कपि रूप दिखावा।’’ और फिर हनुमान जी सुरसा के मुँह में प्रवेश करते हैं और वापस आकर विदाई माॅगते हैं तब सुरसा वरदान देती हैं जाओ! रावण की लंका से अजेय होकर लौटो।
सुनील शुक्ल
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