रामराज्‍य की कल्‍पना.. राजीव दीक्षित

सत्‍यम् लाइव, 3 अक्‍टूबर 2020, दिल्‍ली।। बाबू जी की नजर में क्‍या थी? रामराज्‍य की कल्‍पना। क्‍या होता है रामराज्‍य इसके बारे मेें जानने की उत्‍सुकता ने आज रामराज्‍य की कल्‍पना पर प्रकाश डालने का अवसर मिला ये अवसर मुझसे पहले महर्षि राजीव दीक्षित को मिल चुका है उनकी कही गयी बातों के कुछ अंशों को यहॉ पर दोहरराने का अवसर है भी। क्‍योंकि आज भारत के अन्‍दर जो बच्‍चों को शिक्षा दी जा रही है वो अहिन्‍सावादी नहीं बल्कि हिन्‍सावादी है। 2 अक्‍टूबर 1869 को जन्‍में मोहनदास करमचन्‍द गॉधी ने भारत में समाप्‍त हो रही अहिन्‍सा की अवधारणा को पुन: जीवित की। महात्‍मा गॉधी जी के बारे में जितना भी जाना जाये उतना ही भारतीय संस्‍कृति और सभ्‍यता का परिचय मिलता जाता है। भारतीय स्‍वतंत्रता आन्‍दोलन के प्रमुख प्रणेता बने हुए महात्‍मा गॉधी जी ने भारत में रामराज्‍य की कल्‍पना जो की थी उसके बारे में कुछ समझने का प्रयास श्रीराम पर लिखी गयी। आदिकवि वाल्‍मीकि जी तथा श्रीरामचरित मानस से कम मिलता है परन्‍तु तमिल भाषा में कम्‍बन रामायण, कालिदास जी की रघुवंशम् रामराज्‍य की कल्‍पना का सुन्‍दर चित्रण मिलता है वैसे तो महर्षि राजीव दीक्षित जी ने उसे सत्‍यार्थ करने हेतु अपने मुखारबिन्‍दु से स्‍वयं सुनाया जिसका कुछ अंश आप तक पहुॅचाने का प्रयास करता हों। इसका पहला हिस्‍सा मेरी समझ मेें ऐसे समझना चाहिए कि सुख मन को चाहिए परन्‍तु आनन्दित होना दिल का स्‍वाभाव है और आत्‍मा की सन्‍तुष्टि ही आनन्‍द को ला सकती है अर्थात् यम एवं नियम केे अन्‍तरगर्त बताये गये सत्‍य, हिन्‍सा सहित समस्‍त लक्षणों के पालन के बिना आसन, प्राणायाम और प्रत्‍याहार का पालन नहीं हो सकता है। प्रत्‍याहार ही चूॅकि धारणा को जन्‍म देते हैं और यही धारणा ही है तो रामराज्‍य की बात कर सकती है। कुछ सूत्रों के अनुसार स्‍वामी श्रद्धानन्‍द जी ने सन् 1915 में पहले बार इसी आधार पर महात्‍मा कहा था। कुछ सूत्र कहते हैं कि सुभाष चन्‍द्र बोस जी ने सूर्य की गति को समझकर अहिन्‍सा के सही स्‍वरूप को दिखाने के कारण महात्‍मा कहा था। एक नाम बापू अर्थात् पिता के नाम से भी जाना जाता है। गुरूकुल से प्रकाशित एक ग्रन्‍थ ”वेदों से चुने हुए पुष्‍प” में तो श्रीपति जी कहा है कि स्‍वामी श्रद्धानन्‍द जी अपने मुखरविन्‍द से कहतेे हैंं कि अष्‍टांग योग के आठो नियम यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्‍याहार, धारणा, ध्‍यान तथा समाधी का सही पालन करने वाले महापुरूषों की श्रेणी में सर्वोच्‍य पद पर बैठनेे का श्रेेय महात्‍मा गॉधी को प्राप्‍त है। रामराज्‍य की दूसरे चक्र को समझे तो समाज को चलाने के लिये रामराज्‍य अभी आता है। जब समाज में अर्थव्‍यवस्‍था सही रूप से स्थिर हो तभी समाज में रामरज्‍य आ सकता है। उसके लिये राजीव दीक्षित जी कहते हैं कि कम्‍बन रामायण और रघुवंशम् दोनो की रामकथा में श्रीराम अपने भाई भरत जी से मैं राज्‍य की कल्‍पना कैसी चाहता हूॅॅ ? कहते हैं कि जनता पर कुल मिलाकर टैक्‍स 5 प्रतिशत से ज्‍यादा नहीं होना चाहिए। साथ ही कोई भी परिग्रही व्‍यक्ति को समाज में अग्रिम स्‍थान नहीं होना चाहिए अर्थात् जो भी व्‍यक्ति लालच में आकर सामाजिक कार्य कराता है उसको किसी भी प्रकार से सम्‍मान का पात्र नहीं होना चाहिए। समाज का हर व्‍यक्ति को भरपेट अन्‍न मिले तो कोई भी ऐसा व्‍यक्ति नहीं होगा जो चोरी करे। समाज में स्‍त्री को आदरणीय होने के लिये अपनी रसोई का उचित ज्ञान होनेे से ही वैदिक नारी कही जा सकती है अर्थात् ऐसी स्‍त्री की कल्‍पना की है जो भारतीय समाज में मॉ का दर्जा पाकर सम्‍पूर्ण समाज की मार्ग दर्शक बनकर वैदिक नारी कहलाती है।

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सुनील शुक्‍ल

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