सत्यम् लाइव, 1 सितम्बर 2021, उत्तर प्रदेश।। पहली बार 2007 में एशिया में प्रवेश किया यह वायरस उसी प्रजाति का सदस्य है जिसका एडिज नामक वायरस है और एडिज नामक मच्छर के कारण ही चिकगुनिया, डेंगू जैसी बीमारी होती है। यह मच्छर सुबह या शाम को भारत में ही काट सकता है क्यों कि दिन में सूर्य की गर्मी इतनी तेज होती है कि यह जीवित नहीं रहता है । मादा मच्छर को मां बनने के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है अतः वो मानव शरीर से प्रोटीन लेने के लिए काटती है । इसके काटने से पहले बुखार आता है और फिर जोडो या सिर में दर्द होता है शरीर में लाल चकत्ते तथा आँखें लाल हो जाती हैं ठीक ऐसा ही चिकनगुनिया में भी होता है। ऑखे लाल हो जाना ही सिर्फ अलग से होता है।
गन्दगी से बचेंः वायरस का जीवन चक्र, एडीज एजिप्टी वयस्क मच्छर लगभग 100 से 200 अंडे एक बार में दे सकता है। ये गंदे तथा ठहरे हुए पानी में ही पनपता है इसके अतिरिक्त कंटेनर, बर्तन, पुराने टायर में पानी भरा है तो वहां पर भी ये पनपता है। अंडे जब फूटते है तो लार्वा शैवाल जैसे पानी में मौजूद सामग्रियो पर मोटे तौर पर चार दिनों तक जीवित रहते हैं फिर कुछ दिनों के लिए लार्वा प्यूपा चरण में प्रवेश कर जाता है वो वयस्क उडने वाले मच्छर रूप में उभरते हैं। ये मच्छर लम्बी दूरी तय नहीं कर पाता है सिर्फ 400 मीटर तक ही यात्रा कर सकता है
उपचारः भारतीय वैज्ञानिक श्री राजीव दीक्षित जी के द्वारा सूर्य की तेज गर्मी के कोई भी वायरस 27 दिन से ज्यादा जीवित ही नहीं रह सकता है। यदि आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है तो ये वायरस निक्रिय हो जाता है। ये अनुभव तुलसी के काढ़े का प्रयोग निरन्तर यदि किया जाये तो यह वायरस आपके में मच्छर के काटने के पश्चात् भी पनप नहीं पाता है। उपचार हेतु आयुर्वेदिक औषधि बुखार के लिये महासुदर्शन घनवटी या ओसिमम-200, तुलसी अर्क और शरीर में दर्द के लिये पुर्नादिवटी मण्डूर लेते रहें।
प्रातःकाल खाली पेट सबसे यदि गौ-अर्क एक ढक्कन गुनगुने पानी के साथ ले सकते हैं जो सम्पूर्ण वायरस को मारने की क्षमता रखता है। यदि गर्मी हो ते फलों में पपीता, नारियल पानी, पना सुबह से दोपहर तक ले सकते है। इसके अलावा रात्रि में त्रिफला देशी गाय के दूध या गर्म पानी के साथ लेते रहे अर्थात् पेट को साफ रखे न तो कब्जियत होने दे और न ही अपच होने दे तो भी इस वायरस से बचा जा सकता है। इसी प्रकार भारतीय स्वदेशी के प्रेरक स्व. श्री राजीव दीक्षित जी ने भी आयुर्वेद से दवा बताई है 20 पत्ते तुलसी, नीम की गिलोई का सत् 5 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम, 10 छोटी पीपर के टुकडे का काढा बनाकर तीन खुराक देने से चिकनगुनिया समाप्त हो जाता है।
देशी गाय के गोबर से बना कण्डा या धूपबत्ती जलायें। कोई भी वायरस या मच्छर पैदा ही नहीं लेगा। ऑक्सीजन की प्राप्ति भी धुँआ कराता है। गोबर से उत्पादिक अन्न शरीर की आन्तरिक शक्ति बढ़ाता है इसे ही इम्युनिटी कहते हैं।
फैशन के दौर में यह बात कहना तो अतिशेक्ति होगी परन्तु मच्छर सदैव गहरे रंग की तरफ पहले बढता है जैसे आप के काले बाल देखकर वो बालों पर उडने लगता है अतः बालों को खुला न छोड़े। ऐसा ही गहरे रंग के कपडे पहनने पर आपके पास आयेगा। ढीले और हल्के कलर के कपडे पहनें तो निशि्चत आप इस मच्छर से बच जायेगें।
सुनील शुक्ल
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