कैसे बचे मुंह के छालो से

नई दिल्ली: मीता वशिष्ठ अकसर अपनी स्वास्थ्य समस्याएं ले कर मेरे क्लीनिक पर आती हैं. कुछ समय पहले वे अधिकतर मुंह के छालों को ले कर परेशान रहती थीं. ऐसा कोई भी महीना नहीं बीतता था जब उन्हें मुंह के छाले न होते हों.

कभीकभी तो छालों से उन का मुंह इस तरह से भर जाता था कि उन का खानापीना तक दूभर हो जाता था. उन के छाले ठीक होने में लगभग 1 सप्ताह तो लग ही जाता था. जाहिर है वे इस समस्या को ले कर बहुत परेशान थीं और वे इस का स्थायी हल चाहती थीं.

मीता की समस्या ऐसी जटिल भी नहीं थी, इसलिए जब समस्या की जड़ में जा कर उन का उपचार किया गया तो उन को मुंह के छालों से स्थायी मुक्ति मिल गई. एक मीता ही नहीं, बल्कि न जाने कितने लोग मुंह के छालों से परेशान रहते हैं और उचित उपचार न मिलने के कारण इधरउधर भटकते रहते हैं.

क्यों होते हैं मुंह में छाले

मुंह में छाले होने का कोई निश्चित कारण नहीं है. कई बार तो हमारे खानपान की लापरवाही ही इन छालों के होने का कारण बन जाती है. पाचन संबंधी समस्याओं के कारण भी अकसर छाले हो जाते हैं. आमतौर पर मुंह में छाले होने के ये कारण हो सकते हैं.

– अधिक गरम भोजन करने या बहुत अधिक गरम चाय, कौफी या सूप पीने से.

– दिनभर मुख में सुपारी या तंबाकू भरे रहने से, खैनी व पान के साथ अधिक मात्रा में चूने के सेवन से.

– मुंह व दांतों की ठीक ढंग से सफाई न करने पर, दांतों का संक्रमण होने पर.

– भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी होने से.

– विटामिन बी एवं सी की कमी से.

– लगातार कब्ज बने रहने से.

– जरूरत से कम तरल पदार्थ का सेवन करने से.

– किसी दवा से एलर्जी होने पर.

– विशेष तरह के वायरस, बैक्टीरिया या फंगल के संक्रमण के चलते.

तकलीफदेह हैं लक्षण

मुंह में होने वाले छालों को मुखपाक या मुखव्रण या माउथ अल्सर के नाम से भी जाना जाता है. आम बोलचाल की भाषा में इसे मुंह आना भी कहते हैं. इस रोग में मुख की अंतरीय झिल्ली सूज जाती है और उस पर घाव भी हो जाते हैं. छालों में अकसर पीला सा पस पड़ जाता है. इस स्थिति में छाले बहुत तकलीफदेह हो जाते हैं.

फंगल इन्फैक्शन से होने वाले छाले कैंडिडा अल्बीकन नामक फंगल से होते हैं. इसे थ्रश कहते हैं. ये अकसर छोटे बच्चों में अधिक देखने को मिलते हैं. ठीक से दूध की बोतल धुली न होना, बच्चों का मुख ठीक से साफ न होना, बच्चों की पाचनशक्ति कमजोर होना, विटामिन व पोषक तत्वों का अभाव होना एवं अंधेरे, सीलनभरे कमरे में रहना जहां पर्याप्त मात्रा में धूप व रोशनी न पहुंच पाती हो आदि इस के कारण होते हैं.

फंगल इन्फैक्शन से होने वाले मुख के संक्रमण में रोगी बच्चा अस्वस्थ व चिड़चिड़ा हो जाता है. उस का मुंह व जीभ अत्यधिक शुष्क हो जाती है, होंठ, गाल का भीतरी भाग, तालू, जीभ आदि पर छोटेछोटे घाव हो जाते हैं. जीभ, तालू आदि में सफेदसफेद दही के समान तह जम जाती है.

फंगल इन्फैक्शन से होने वाले छाले बड़े व्यक्तियों में भी हो सकते हैं. अधिक दिनों तक एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करने वाले एवं मधुमेह से पीडि़त व्यक्ति को फंगल इन्फैक्शन अधिक होता है.

वायरस जनित मुखपाक एक प्रकार के फिल्ट्रैबल वायरस द्वारा होता है. यह वायरस आंतों के रोग, लंबे समय तक अजीर्ण से पीडि़त रहने, पाचन संबंधी अनियमितताओं एवं दूसरों के साथ एक ही थाली में खाने आदि से पनप सकता है. वायरस जनित मुखपाक में होंठ, गाल या जीभ पर वेदना युक्त छाले हो जाते हैं जो बाद में व्रण का रूप ले लेते हैं और तब खानेपीने में कठिनाई होती है व लार अधिक मात्रा में निकलती है.

कारणों की करें पहचान

Ads Middle of Post
Advertisements

छाले होने का सहीसही कारण जाने बिना उन से नजात पाना संभव नहीं है. बिना सही कारण जाने,अंधाधुंध एंटीबायोटिक के प्रयोग से फायदे की जगह नुकसान भी हो सकता है. इस से फंगल इन्फैक्शन बढ़ने का जोखिम भी रहता है.

वैसे भी अधिक एंटीबायोटिक आंत में पाए जाने वाले स्वाभाविक व लाभदायक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं. इस के अधिक प्रयोग से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी घटती है. छालों का इलाज न कर के यदि उस के होने वाले कारण का उपचार किया जाए तो रोगी को जल्दी राहत मिलती है. वैसे भी जब तक स्थिति गंभीर न हो, हमें दवाइयों की अपेक्षा नैसर्गिक उपचार को ही प्राथमिकता देनी चाहिए.

मुंह की रखें साफसफाई

छालों से छुटकारा पाने के लिए मुंह की ठीक से साफसफाई करें. कभीकभी इतना कर लेने भर से ही हमें छालों से राहत मिल जाती है. मुंह की साफसफाई रखने से वहां पर बैक्टीरिया, फंगस एवं वायरस नहीं पनप पाते हैं, जिस से उन से होने वाले छालों से नजात मिल जाती है. हर मुख्य भोजन के बाद ठीक से दांतों की सफाई एवं कुल्ले करने से भी मुंह साफसुथरा रहता है. इस से मुंह की बदबू व सांस की दुर्गंध से भी छुटकारा मिल जाता है.

कब्ज का करें निवारण

कब्ज बने रहना मुंह के छालों का एक चिरपरिचित सा कारण है. लगातार कब्ज बने रहना हमारी खराब पाचनशक्ति का परिचायक है. इस से पेट में गैस बन सकती है और खट्टी डकारें आती हैं. एसिडिटी की शिकायत बनी रहती है, जिस से पेट के ऊपरी हिस्से से ले कर गले तक जलन हो सकती है. अधिक दिनों तक ऐसा बने रहने से मुंह में छाले होने की संभावना बढ़ जाती है. जिस का सही उपचार कब्ज का निराकरण ही है.

बदलें खानपान की आदतें

छालों से नजात पाने के लिए कभीकभी हमें अपने खानपान की आदतों को भी बदलना पड़ सकता है. अधिक तला व मसालेदार खाना हमारी पाचनक्रिया को प्रभावित करता है. सिगरेटबीड़ी पीने से, दिनभर तंबाकू या सुपारी चबाने से, शराब आदि का सेवन करने से भी मुख में घाव बन जाते हैं. सो, ऐसी चीजों का सेवन न करना ही उचित है.

करें रोकथाम

छालों का उपचार करने की अपेक्षा उन की रोकथाम करना अच्छा विकल्प है. छाले न हों, इस के लिए हमेशा ताजा व कम मिर्चमसालेदार भोजन करें. हरी

व पत्तेदार सब्जियां, सलाद, फल आदि अपने भोजन में अवश्य शामिल करें. चोकरयुक्त आटे की रोटियां व अंकुरित अनाज खाएं. इस सब से मुंह के छालों के साथसाथ कब्ज भी दूर होगा, जो कि छालों का एक मुख्य कारण है.

सुबह उठ कर ढंग से मुंह व दांत साफ कर के 1-2 गिलास पानी पिएं और कुछ देर तक खुली छत पर टहलें. इस से भी कब्ज का निवारण होगा. सुबह की चाय की जगह एक गिलास पानी में आधा नीबू निचोड़ कर पिएं. नीबू विटामिन सी से भरपूर होता है और छालों में राहत देता है. सुबह खाली पेट थोड़ा व्यायाम कर लेना सोने पर सुहागे की तरह है. इस से पाचनक्रिया दुरुस्त बनी रहती है और शरीर में चुस्तीफुरती रहती है.

उपचार है जरूरी

यों तो खानपान में परहेज व मुंह की ठीक ढंग से साफसफाई रखनेभर से ही छाले 6-7 दिनों में खुदबखुद ठीक हो जाते हैं और अकसर हमें किसी भी तरह के उपचार की आवश्यकता नहीं पड़ती है. पर कभीकभी किसी खास तरह के संक्रमण के कारण छाले बहुत अधिक बढ़ कर कष्टदायक हो जाते हैं और उन में पस पड़ जाने के कारण सैकंडरी संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसी स्थिति में उन का उपचार किया जाना आवश्यक हो जाता है. सही उपचार से जल्द ही आराम मिल जाता है.

– यदि मुंह के छालों का कोई विशेष कारण न हो तो हाइड्रोजन पेरौक्साइड में बराबर मात्रा में पानी मिला कर कुल्ले करने से राहत मिलती है.

– आयोडीन या सिल्वर नाइट्रैट का 20 प्रतिशत घोल छालों पर लगाने से बहुत राहत मिलती है.

– हाइड्रोकौर्टिसोन का 1 प्रतिशत मलहम घावों पर लगाने से वे शीघ्रता से भरते हैं. पर इस का उपयोग अधिक दिनों तक नहीं करना चाहिए.

– छालों में पस पड़ जाने पर एंटीबायोटिक दवाएं देनी चाहिए.

– फंगल इन्फैक्शन होने पर एंटीफंगल दवा खाने और लगाने के लिए लेनी चाहिए.

– उचित मात्रा में मल्टीविटामिन व मल्टीमिनरल्स लेने चाहिए.

अन्य ख़बरे

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.