उत्तराखण्ड: पांच सौ करोड़ से ज्यादा का है घोटाला #सीबीआई उत्तराखण्ड के एनएच 74 घोटाले की जांच नही करेगी# ओपीटी ने उत्तराखण्ड सरकार को सूचित किया #छह महीने डीओपीटी इसे अटकाए बैठी रहे# मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड ने उत्तराखण्ड विधान सभा में स्वीकार किया है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने सीबीआई जांच स्वीकार कर ली है# उत्तराखण्ड के सबसे बडे घोटाले की जांच से इंकार #उत्तराखण्ड राज्य सरकार को सूचित #विपक्ष इस पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगा सकता है# परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने साफ कहा था कि भू-अधिग्रहण जिलाधिकारी के माध्यम से होता है
“हिमालयायूके न्यूज पोर्टल के खबर के अनुसार”
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने उत्तराखण्ड सरकार को सूचित किया है कि सीबीआई उत्तराखण्ड के एनएच 74 घोटाले की जांच नही करेगी, डबल इंजन की सरकार में छह महीने डीओपीटी इसे अटकाए बैठी रहे।
ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड ने उत्तराखण्ड विधान सभा में स्वीकार किया है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने सीबीआई जांच स्वीकार कर ली है, वही आज ताजातरीन खबर के अनुसार कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने उत्तराखण्ड के सबसे बडे घोटाले की जांच से इंकार कर दिया है और इस संबंध में उत्तराखण्ड राज्य सरकार को सूचित कर दिया है, ऐसे में जनचर्चा शुरू हो गयी है कि मुख्यमंत्री ने उत्तराखण्ड विधानसभा को आखिर किस आधार पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग डीओपीटी) द्वारा सीबीआई जांच की बात की घोषणा की थी, विपक्ष इस पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगा सकता है,
डबल इंजन की सरकार में छह महीने डीओपीटी इसे अटकाए बैठी रहे। मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड ने उत्तराखण्ड विधान सभा में स्वीकार किया है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने सीबीआई जांच स्वीकार कर ली है, वही आज ताजातरीन खबर के अनुसार कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने उत्तराखण्ड के सबसे बडे घोटाले की जांच से इंकार कर दिया है और इस संबंध में उत्तराखण्ड राज्य सरकार को सूचित कर दिया है, ऐसे में जनचर्चा शुरू हो गयी है कि मुख्यमंत्री ने उत्तराखण्ड विधानसभा को आखिर किस आधार पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग डीओपीटी) द्वारा सीबीआई जांच की बात की घोषणा की थी, विपक्ष इस पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगा सकता है
देहरादून की सीबीआई शाखा ने बीती 21 जून 2017 को जांच करने की स्वीकृति देते हुए डीओपीटी को पत्र भेज दिया था। नियमानुसार सीबीआई द्वारा किसी जांच को स्वीकार किए जाने की औपचारिक अधिसूचना डीओपीटी को ही जारी करनी होती है, जो तब से ही लंबित है। यह बात पुख्ता होती है, सीबीआई के उस हलफनामे से जो हाईकोर्ट के निर्देश पर बीते दिनों दाखिल किया गया है।
सीएम ने एक मौके पर विधानसभा में भी बयान दिया कि मामले की जांच जल्द ही सीबीआई करेगी। बावजूद इसके जांच स्वीकार या अस्वीकार किए जाने संबंधी कोई जवाब आज तक नहीं आया। विपक्ष रह-रहकर इस मामले को तमाम मौकों पर उठाते हुए सरकार पर जानबूझकर जांच न करवाने का आरोप लगाता रहता है। घोटाले से जुड़े सारे रिकार्ड उपलब्ध हैं। मगर अफसरों और नेताओं की लॉबी ने इसे अपने प्रभाव से रुकवा रखा है। डीओपीटी में इसका इस तरह अटकना साफ संकेत करता है कि घोटाले के मुख्य षडयत्रकारी असरदार है।
सीएम ने एक मौके पर विधानसभा में भी बयान दिया कि मामले की जांच जल्द ही सीबीआई करेगी। बावजूद इसके जांच स्वीकार या अस्वीकार किए जाने संबंधी कोई जवाब आज तक नहीं आया। विपक्ष रह-रहकर इस मामले को तमाम मौकों पर उठाते हुए सरकार पर जानबूझकर जांच न करवाने का आरोप लगाता रहता है। घोटाले से जुड़े सारे रिकार्ड उपलब्ध हैं। मगर अफसरों और नेताओं की लॉबी ने इसे अपने प्रभाव से रुकवा रखा है। डीओपीटी में इसका इस तरह अटकना साफ संकेत करता है कि घोटाले के मुख्य षडयत्रकारी असरदार है।
एनएच-74 के चौड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण में बांटी गई मुआवज़ा राशि में 500 करोड़ रुपये का कथित घोटाला हुआ था. राष्ट्रीय राजमार्ग 74 उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के पास स्थित नगीना से शुरू होकर उत्तराखंड के काशीपुर इलाके में ख़त्म होता है. इसकी कुल लंबाई 333 किलोमीटर है. अरबों रुपये के इस घोटाले में तमाम छोटे-बड़े अधिकारियों के अलावा कुमाऊं के कुछ बड़े राजनेताओं का नाम खुलकर लिया गया। पूर्व में तत्कालीन कमिश्नर डी. सेंथिल पांडियन ने मामले का खुलासा किया था। उन्होंने मामले की प्राथमिक जांच करके अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपी थी। साथ ही पूरे मामले की जांच किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी से कराए जाने की संस्तुति की थी। इसी के बाद सीएम ने सीबीआई जांच की सिफारिश की थी। मार्च में की गई इस सिफारिश के बाद शासने से दो बार सीबीआई को रिमाइंडर भी भेजा गया था।
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने साफ कहा था कि भू-अधिग्रहण जिलाधिकारी के माध्यम से होता है
एनएचएआई के चेयरमैन युद्धवीर सिंह मलिक ने 26 मई के राज्य के मुख्य सचिव को लिखी चिट्ठी में कहा था कि ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में अथॉरिटी के अधिकारियों का रोल नहीं है
और इस बारे में राज्य सरकार कानूनी सलाह ले ;
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने साफ कहा था कि एनएच के लिए भू-अधिग्रहण तय करने में केन्द्र के अधिकारियों की कोई भूमिका नहीं होती है। यह काम राज्य सरकार के स्तर पर होता है और जिलाधिकारी के माध्यम से होता है ।
भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी मुहिम के बावजूद केंद्र सरकार इस दुविधा में रही कि उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले में सामने आये 300 करोड़ रूपये के एनएच-74 भूमि अधिग्रहण घोटाले की सीबीआई जांच करायी जाये या नहीं।
वही सीएम विधानसभा में यह घोषणा कर चुके है कि इस मामले की सीबीआई द्वारा जांच करवाई जाएगी। मार्च में पद संभालने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री रावत ने कुमांउू कमिशनर की जांच रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए तीन उपजिलाधिकारियों समेत कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया था तथा मामले की जांच सीबीआई से कराने की घोषणा की थी। प्रदेश बनने के 16 साल के इतिहास में इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ी कार्रवाई माना गया था।
राज्य विधानसभा में विपक्ष की नेता इंदिरा हृदयेश का लगातार यह आरोप है कि जांच को लेकर सरकार गंभीर नहीं है और वह घोटाले में लिप्त बड़ी मछलियों को बचाना चाहती है।
वही एनएच-74 घोटाले में सीबीआई जांच करने को तैयार थी, मगर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने मामला अटका रखा है। सीबीआई ने छह माह पूर्व ही जांच स्वीकार करने पर सहमति दे दी थी। अब कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने साफ मना कर दिया है
वही एनएच-74 घोटाले में सीबीआई जांच करने को तैयार थी, मगर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने मामला अटका रखा है। सीबीआई ने छह माह पूर्व ही जांच स्वीकार करने पर सहमति दे दी थी। अब कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने साफ मना कर दिया है
उत्तराखंड में एनएच-74 के लिये भूमि अधिग्रहण और मुआवजा बांटे जाने का काम 2011 से 2016 के बीच हुआ। घोटाले की बात इसी साल एक मार्च को सामने आई जब राज्य में विधानसभा चुनाव तो हो चुके थे लेकिन नतीजे नहीं आये थे। कुमाऊं के कमिश्नर सेंथिल पांड्यन की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कुल 300 करोड के घोटाले की बात कही। रिपोर्ट में कहा गया है कृषि जमीन को व्यवसायिक जमीन बताया गया और सरकारी कागजों में तारीख का हेर फेर किया गया।
एनएच-74 घोटाले में पांच सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम का घपला होने का अंदेशा है। इसमें अधिग्रहण की जाने वाली कृषि भूमि को अकृषि दिखाते हुए मुआवजे की राशि को कई गुना बढ़ा दिया गया। बीच की रकम में अफसरों और नेताओं के अलावा भूमि के काश्तकारों में बंदरबांट की गई। इस खेल से जुड़े तमाम अफसर जेल भी भेजे जा चुके हैं। फिलहाल मामले की जांच स्थानीय स्तर पर बनी एसआईटी कर रही है, जो यदा-कदा कुछ कार्रवाई करती रहती है।
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